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‘उन सबको मार दिया गया है’– कोविड के बाद पोल्ट्री किसानों के लिए एक और विपदा लाया बर्ड फ्लू

-द प्रिंट,

सुधीर कुमार को पोल्ट्री फार्म व्यवसाय में सिर्फ ढाई साल हुए हैं, लेकिन उन्हें ऐसा लगता है, जैसे सारी ज़िंदगी इसी में गुज़र गई है.

बीते साल में, महामारी और उसके बाद लॉकडाउन्स ने, उनके कारोबार को अकल्पनीय नुक़सान पहुंचाया है. फार्म की कुल 50,000 मुर्ग़ियों में से आधी को, उन्हें खुद से मार देना पड़ा. कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने ज़मीन खोदी और उन्हें ज़बर्दस्ती दफ्न कर दिया. हम और कुछ नहीं कर सकते थे, क्योंकि ऐसा न करने पर वो भूखी मर जातीं’.

साल के बदलने के साथ ही, बाक़ी सब लोगों की तरह कुमार को भी उम्मीद थी कि दिन फिर जाएंगे. लेकिन जैसे ही लगा कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में, भारत को सफलता मिलने लगी है, और इसकी वैक्सीन सामने नज़र आने लगी है, कुमार को एक और मुसीबत ने घेर लिया- बर्ड फ्लू.

हरियाणा के पंचकुला में कुमार का फार्म, उन पहले दो फार्म्स में से था, जो वायरस के लिए पॉज़िटिव पाए गए. कुमार ने बताया, ‘दिसंबर 2020 में मेरे पास 58,000 पोल्ट्री थीं, जिनमें से 30,000 बर्ड फ्लू से मर गईं, और बाक़ी को मार दिया गया. मेरे पास कुछ नहीं बचा है’. 42 वर्षीय दो बच्चों के पिता, अपने परिवार में अकेले कमाने वाले हैं.

अभी तक नौ राज्यों व केंद्र-शासित क्षेत्रों से, बर्डफ्लू के पुष्ट मामले सामने आ चुके हैं. ये हैं- दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गुजरात.

हरियाणा में पक्षियों की मौत के, सबसे ज़्यादा मामले सामने आए हैं- पिछले दो-तीन हफ्तों में चार लाख- जिसके बाद सरकार ने पंचकुला ज़िले के पांच फार्मों पर, 1.5 लाख पोल्ट्री बर्ड्स को मारने का आदेश दे दिया.

इस नए संकट के दौरान, पोल्ट्री किसानों के लिए अपने कारोबार को फिर से खड़ा करने का संघर्ष कहीं अधिक बढ़ गया है, चूंकि महामारी की मार से उबरे हुए, अभी साल भी नहीं हुआ था. बर्ड्स को मारने से हुए नुक़सान के अलावा, उन्हें महामारी के बचे कुचे प्रभावों से भी निपटना पड़ रहा है, और अब उनके सामने ये सवाल है, कि इस नए वायरस से किस तरह निपटा जाए.

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फ्लू के दौरान बर्ड्स को मारने के नुक़सान
पंचकुला का बरवाला इलाक़ा जहां कुमार रहते हैं, एशिया का दूसरा सबसे बड़ा पोल्ट्री केंद्र है, जहां क़रीब 200 पोल्ट्री फार्म्स हैं. इनमें से दो फार्म्स- कुमार का सिद्धार्थ पोल्ट्री फार्म, और आरके गुप्ता का नेचर पोल्ट्री फार्म, बर्ड फ्लू टेस्ट में पॉज़िटिव पाए गए हैं, जिसे एवियन इनफ्लुएंज़ा (एच5एन8 वायरस) भी कहा जाता है.

पिछले हफ्ते, हरियाणा के पशुपालन व डेयरी मंत्री जेपी दलाल ने कहा, ‘प्रभावित पोल्ट्री फार्मों के वर्कर्स को निर्देश दिया गया, कि वो फार्मों से बाहर न जाएं. फार्म मालिकों को निर्देश दिया गया, कि अंडे और चिकंस फार्मों से बाहर न भेजें. प्रभावित हिस्से के कम से कम 10 किलोमीटर के दायरे की, एक महीने के लिए घेराबंदी कर दी गई है’.

पंचकुला में पक्षियों को मारने का काम 9 जनवरी को शुरू हुआ. मुआवज़े के तौर पर राज्य सरकार ने ऐलान किया, कि वो मारी गई हर बर्ड के लिए, मालिक को 90 रुपए देगी. लेकिन, बर्ड्स को मारने के लिए पेश की गई रक़म ने, बहुत से पोल्ट्री किसानों को नाराज़ कर दिया है.

एक पोल्ट्री फार्म मालिक राजेश सिंघला, जो एसोसिएशन के लिए मीडिया से संपर्क का काम भी देख रहे हैं, ने कहा, ‘एक बर्ड की लागत कम से कम 300 रुपए आती है, उसके मुक़ाबले 90 रुपए कुछ भी नहीं है. हम अपने क़र्ज़ कैसे अदा कर पाएंगे? हरियाणा पोल्ट्री फार्म एसोसिएशन ने इस बारे में हरियाणा के पशुपालन विभाग, मुख्यमंत्री खट्टर, और प्रधानमंत्री को लिखा है’.

बरवाला में सिंघला के फार्म से भी, बर्डफ्लू के लिए नमूने लिए गए थे. लेकिन, सभी दो लाख नमूनों के टेस्ट निगेटिव पाए गए.

पिछले महीने जब बर्डफ्लू फैलने का डर व्याप्त होना शुरू हुआ, तो पोल्ट्री किसान मजबूरन अपने उत्पाद, कम दामों पर बेंचने को मजबूर हो गए. कुमार ने कहा, ‘आमतौर पर मैं एक चिकन 120 रुपए में बेंचता हूं, लेकिन अब मुझे मजबूरन सिर्फ 30 रुपए में, उनसे छुटकारा हासिल करना पड़ा’. सिंघला ने कहा, ‘अंडों के दामों में भी, कम से कम 30-40 प्रतिशत की गिरावट आई है’.

12 महीनों में ये दूसरी बार है, जब पोल्ट्री किसानों को या तो मजबूरन कम दामों पर बेंचना पड़ा, या अपनी बर्ड्स को उन्हें खुद मारना पड़ा.

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